टाना भगत आंदोलन, जिसे ताना भगत आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है, भारत के झारखंड राज्य में 1914 से 1920 तक चला एक धार्मिक और राजनीतिक आंदोलन था। यह आंदोलन जतरा उरांव के नेतृत्व में चलाया गया था, जो एक आदिवासी संत थे।
आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करना था। टाना भगतों ने जमीन की मालगुजारी देने से इनकार कर दिया, बेगारी का विरोध किया और अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसक आंदोलन किया।
आंदोलन की शुरुआत झारखंड के छोटानागपुर क्षेत्र में हुई। टाना भगतों ने एक नए पंथ की स्थापना की, जिसे टाना पंथ कहा जाता है। इस पंथ ने आदिवासियों को एकजुट करने और उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया।
आंदोलन ने तेजी से जन समर्थन प्राप्त किया और जल्द ही पूरे झारखंड में फैल गया। टाना भगतों ने कई सफल आंदोलन किए, जिनमें शामिल हैं:
- 1916 में, टाना भगतों ने रांची में एक विशाल रैली का आयोजन किया, जिसमें हजारों आदिवासी शामिल हुए।
- 1917 में, टाना भगतों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक अहिंसक आंदोलन शुरू किया, जिसमें उन्होंने मालगुजारी देने से इनकार कर दिया।
- 1918 में, टाना भगतों ने रांची में एक अंग्रेजी पुलिस थाने पर हमला किया।
आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार को आदिवासियों के अधिकारों के बारे में गंभीरता से सोचने पर मजबूर होना पड़ा। सरकार ने टाना भगतों के साथ बातचीत की और कुछ समझौतों पर पहुंचा।
हालांकि, आंदोलन को अंततः ब्रिटिश सरकार द्वारा दबा दिया गया। 1920 में, जतरा उरांव को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें जेल में डाल दिया गया। टाना भगत आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक महत्वपूर्ण भाग के रूप में माना जाता है। इसने आदिवासियों को एकजुट करने और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।
यहां टाना भगत आंदोलन के कुछ प्रमुख परिणाम दिए गए हैं:
- आदिवासियों के अधिकारों के प्रति ब्रिटिश सरकार का ध्यान आकर्षित किया।
- आदिवासियों में राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा दिया।
- आदिवासियों को एकजुट करने और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।
टाना भगत आंदोलन एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है जिसने झारखंड राज्य के इतिहास को आकार दिया। यह आंदोलन आदिवासी संस्कृति और पहचान के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक है।